टेलिकॉम सेक्टर किसी भी इकॉनमी पर महत्वपूर्ण प्रभाव रखता है। इसके बिना आर्थिक विकास के समावेशन की परिकल्पना नही की जा सकती। अतः आइए हम इसकी वर्तमान स्थिति था हाल ही में सरकार द्वारा उठाए कदमों पर नज़र डालते है|
TRAI के अनुसार भारत जुलाई 2022 में 85.11% के कुल टेली-घनत्व (teledensity) के साथ विश्व का दूसरा सबसे बड़ा दूर संचार बाज़ार है हालाँकि कुछ समस्यायें जैसे : (right-of-way costs), आधुनिक दूरसंचार अवसंरचना की कम ग्रामीण पहुँच, डेटा गोपनीयता और ई-कचरे के कुप्रबंधन आदि।

टेलिकॉम सेक्टर की वर्तमान स्थिति :
1.20 बिलियन ग्राहक आधार के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा दूरसंचार बाज़ार है और इसने पिछले डेढ़ दशक में मज़बूत विकास दर्ज किया है। तथा यह 2025 तक ग्लोबल लेवल पर दूसरा स्मार्ट्फ़ोन बाज़ार बनने की ओर उन्मुख है। यह सेक्टर गवर्न्मंट के non – tax revenue में महत्वपूर्ण योगदान कर्ता है । जैसे : स्पेक्ट्रम नीलामी, नए ऑपरेटरों से एकमुश्त शुल्क एवं आवर्ती लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम शुल्क के माध्यम से।
प्रमुख सरकारी पहलें:
- ( MNP ) मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी : इसने ग्राहकों को वर्तमान मोबाइल नंबर ही बनाए रखते हुए अपने लाइसेंस सेवा क्षेत्र को बदलने में सक्षम बनाया है।
- BharatNet : यह एक फ़्लाग्शिप प्रोग्राम है । जिसके तहत ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क ( OFN ) के माध्यम से भारत की 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में से प्रत्येक को परस्पर संबद्ध किया जा रहा है। यह विश्व में अपनी तरह की सबसे बड़ी ग्रामीण संपर्क परियोजना है।
- 5G Era : Bharat ने हाल ही में 5G की दुनिया में कदम रखा है जो DIGITAL INDIA & SMART CITIES जैसे मिशनो को नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा
- Telecom draft bill, 2011 : इसमें सरकार ने टेलिकॉम सेवाओं की परिभाषा में OTT सेवाओं को जोड़कर विस्तार किया है । मतलब अब दोनो के लिए एक ही license की ज़रूरत होगी।
- दूरसंचार क्षेत्र में अब स्वचालित मार्ग के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) तक की अनुमति दे दी गई है।

टेलिकॉम सेक्टर से सम्बंधित मुद्दे :
- U-R असमानता : देश के शहरी (55.42%) और ग्रामीण (44.58%) क्षेत्रों के बीच दूरसंचार ग्राहकों की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय विसंगति मौजूद है।
- देश में फिक्स्ड ब्रॉडबैंड की पहुँच विश्व में सबसे कम है (1.69 प्रति 100 निवासी)।
- Right of way ’ चुनौती : विभिन्न राज्यों में परिवर्तनशील और जटिल कानूनी प्रक्रियाओं, लेवी में एकरूपता की कमी और वन विभाग, रेलवे एवं राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण से अनुमोदन आवश्यकताओं के कारण भारतीय दूरसंचार क्षेत्र के लिये ‘राइट ऑफ वे’ (Right of Way) एक विवादास्पद मुद्दा रहा है क्योंकि इन परिदृश्यों में कागजी कार्रवाई में देरी की समस्या उत्पन्न होती है।
- स्पेक्ट्रम उपलब्धता की कमी: जबकि स्पेक्ट्रम उपलब्धता एक बड़ी वैश्विक समस्या है, यह समस्या भारत में विशेष रूप से तीव्र है।
- सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार भारत में ऑपरेटरों के पास अंतर्राष्ट्रीय मानकों की तुलना में पर्याप्त कम मात्रा में स्पेक्ट्रम उपलब्ध हैं (औसतन लगभग 13 मेगाहर्ट्ज)।
- ई-कचरे का कुप्रबंधन: दूरसंचार उद्योग पर्यावरण को कई तरह से प्रभावित करता है, जिसमें E – waste प्रमुख है। भारत में अनौपचारिक कचरा बीनने वालों द्वारा 95% से अधिक ई-कचरे का अवैध रूप से पुनर्चक्रण किया जाता है।
- Optical fiber connectivity की कमी: भारत में डेटा की खपत तेज़ी से बढ़ रही है और फाइबर नेटवर्क की कमी दूरसंचार कंपनियों द्वारा विश्वसनीय और उच्च गति कनेक्टिविटी प्रदान करने की क्षमता को सीमित कर रही है।
- भारत को 5G की ओर सरल संक्रमण के लिये 16 गुना अधिक फाइबर की आवश्यकता होगी।