गणेश चतुर्थी हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है| यह भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किंतु महाराष्ट्र में बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है| पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था| गणेश चतुर्थी पर्व पर हिंदू भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है| कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है| इस प्रतिमा को 9 दिन तक पूजा जाता है और दसवें दिन बड़ी संख्या में आसपास के लोग दर्शन करने पहुंचते हैं और गाजे-बाजे से श्री गणेश प्रतिमा को किसी तालाब इत्यादि जल में विसर्जित किया जाता है| इस साल गणेश चतुर्थी 31 अगस्त की है जो कि बुधवार की पड़ रही है|

आइये जानते है गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है
सृष्टि के आरंभ में जब भी प्रश्न उठा कि प्रथम पूज्य किसे माना जाए तो देवता भगवान शिव के पास पहुंचे| तब शिवजी ने कहा, संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा जो सबसे पहले कर लेगा उसे ही प्रथम पूज्य माना जाएगा| इसलिए सभी देवता अपने अपने वाहन पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े| चूँकि गणेश भगवान का वाहन चूहा है और उनका शरीर स्थूल है तो भगवान गणेश कैसे परिक्रमा कर पाते| तब भगवान गणेश जी ने अपनी बुद्धि और चतुराई से अपने पिता भगवान शिव और माता पार्वती की परिक्रमा पूरी की और हाथ जोड़कर खड़े हो गए| तब भगवान शिव ने कहा तुम से बड़ा और बुद्धिमान इस पूरे संसार में और कोई नहीं है| माता और पिता की तीन परिक्रमा करने से तुम ने तीनों लोगों की परिक्रमा पूरी कर ली है और इसका पुण्य तुम्हें मिल गया जो पृथ्वी की परिक्रमा से भी बड़ा है|
इसलिए जो मनुष्य किसी भी कार्य को आरंभ करने से पहले तुम्हारा पूजन करेगा उसे किसी भी प्रकार की कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा| बस तभी से भगवान गणेश अग्रपूज्य हो गए| उनकी पूजा सभी देवी और देवताओं से पहले की जाने लगी| और तभी से भगवान गणेश की पूजा के बाद बाकी सभी देवताओं की पूजा की जाती है| इसलिए गणेश चतुर्थी में गणेश भगवान की पूजा की जाती है |
गणेश चतुर्थी को मनाने वाले सभी श्रद्धालु स्थापित की गई भगवान गणेश की प्रतिमा को दसवे दिन अनंत चतुर्दशी के दिन विसर्जित करते हैं| इस प्रकार गणेश उत्सव का समापन किया जाता है| शिव पुराण में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मंगल मूर्ति गणेश की तिथि बताया गया है जबकि गणेश पुराण के मत से यह गणेश अवतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था|
गणपति का अर्थ है, गण+पति अर्थात गण मतलब पवित्र और पति मतलब स्वामी, अर्थात पवित्रता के स्वामी
गणेश चतुर्थी 10 दिन तक क्यों मनाई जाती है
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जब वेदव्यास जी ने महाभारत की कथा भगवान गणेश जी को 10 दिन तक सुनाई थी, तब उन्होंने अपने नेत्र बंद कर लिए थे और जब 10 दिन बाद आंखें खोली तो पाए कि भगवान गणेश जी का तापमान बहुत अधिक हो गया था| फिर उसी समय वेदव्यास जी ने निकट स्थित कुंड में भगवान गणेश जी का स्नान करवाया था| जिससे उनके शरीर का तापमान कम हुआ| इसलिए गणपति स्थापना के 10 दिन तक गणेश जी की पूजा की जाती है और फिर उनकी प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है| गणेश विसर्जन इस बात का भी प्रतीक है कि यह शरीर मिट्टी का बना है और अंत में मिट्टी में ही मिल जाना है|
गणेश चतुर्थी का उत्सव कब से मनाया जा रहा है
यह उत्सव वैसे तो कई वर्षों से मनाया जा रहा है लेकिन 1893 साल से पहले नहीं मनाया जाता था और ना ही बड़े पैमाने पर पंडालों में इस तरह मनाया जाता था| 1893 में बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेजो के विरुद्ध एकजुट करने के लिए इस उत्सव का आयोजन किया जिसमें बड़े पैमाने पर लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और इस प्रकार पूरे राष्ट्र में गणेश चतुर्थी मनाई जाने लगी| बाल गंगाधर तिलक ने यह आयोजन महाराष्ट्र में किया था| इसलिए यह पर्व पूरे महाराष्ट्र में बढ़-चढ़कर मनाया जाने लगा| बाल गंगाधर तिलक स्वराज के लिए संघर्ष कर रहे थे और उन्हें एक ऐसा मंच चाहिए था जिसके माध्यम से उनकी आवाज अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे| तब उन्होंने गणपति उत्सव का चयन किया और इसे एक भव्य रुप दिया जिसकी छवि आज तक पूरे महाराष्ट्र में देखने को मिलती है|
गणेश चतुर्थी की कथा
शिव पुराण के अंतर्गत रूद्र संहिता के चतुर्थ खंड में वर्णन है की माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपने मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वारपाल बना दिया| शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया| इस पर भगवान शिव ने बालक गणेश जी से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में गणेश को पराजित नहीं कर सके| तो भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से बालक गणेश का सर काट दिया| इससे माता पार्वती बहुत क्रोधित हुई| तब देवी देवताओं ने देव ऋषि नारद की सलाह पर जगदंबा की स्तुति करके उन्हें शांत किया| भगवान शिवजी के निर्देश पर विष्णु जी उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले हाथी का सिर काटकर ले आए| गज के मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया| तब माता पार्वती ने प्रसन्न होकर उस बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया| ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वोपरि घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दिया|
भगवान शंकर ने कहा बालक गिरजानंदन विनाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा| तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गुणों का अध्यक्ष होगा| गणेश्वर तू भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है इस स्थिति में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी|
गणेश चतुर्थी की द्वितीय कथा
एक बार महादेव जी पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए| एक सुंदर स्थान पर पार्वती जी ने महादेव जी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की| तब शिवजी ने कहा हमारी हार-जीत का साक्षी कौन होगा| पार्वती ने तत्काल वहां की घास के तिनके बटोर कर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण प्रतिष्ठा करके एक पुत्र को जन्म दिया| उसे कहा बेटा हम चौपड़ खेलना चाहते हैं किंतु यहां हार-जीत का साक्षी कोई नहीं है अतः खेल के अंत में तुम हमारी हार-जीत के साक्षी हो कर बताना कि हम में से कौन जीता और कौन हारा| खेल आरंभ हुआ देव योग से तीनों बार पार्वती जी ही जीती जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय कराया गया तो उसने महादेव जी को विजयी बताया| परिणाम स्वरूप पार्वती जी ने गुस्से में आकर उसे एक पाव से लंगड़ा कर दिया और वहां पड़े कीचड़ में दुख भोगने का शाप दे दिया|
बालक ने विनम्रता पूर्वक कहा मां मुझसे अज्ञानता में ऐसा हो गया है, मैंने किसी छल या द्वेष के कारण ऐसा नहीं किया, मुझे क्षमा करें तथा शाप से मुक्ति का उपाय बताएं| तब ममता रूपी मां पार्वती को उस पर दया आ गई और वह बोली यहां नागकन्याएं गणेश पूजन करने आएँगी| उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे| इतना कहकर वह कैलाश पर्वत चले गई | 1 वर्ष बाद वहां श्रावण में नागकन्याएं गणेश पूजन के लिए आई| नाथ कन्याओं ने गणेश व्रत करके इस बालक को भी व्रत की विधि बताई|
तत्पश्चात बालक ने 12 दिन तक श्री गणेश जी का व्रत किया| तब गणेश जी ने उसे दर्शन देकर कहा मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूं मनोवांछित वर मांगो बालक | बालक बोला भगवंत मेरे पांव में इतनी शक्ति दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता पिता के पास पहुंच सकूं और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएं| गणेश जी तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए| बालक भगवान शिव के चरणों में पहुंच गया| शिव जी ने उससे वहां तक पहुंचने के साधन के बारे में पूछा, तब बालक ने सारी कथा शिव जी को सुना दी| उधर उसी दिन पार्वती, शिवजी से विमुख हो गई थी| तब भगवान शंकर ने भी बालक की तरह 21 दिन तक श्रीगणेश का व्रत किया जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेव जी से मिलने की इच्छा जागृत हुई | वह शीघ्र ही कैलाश पर्वत आ पहुंची | वहां पहुंचकर पार्वती जी ने शिवजी से पूछा आपने ऐसा कौन सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप में आपके पास भागी-भागी आ गई हूं| शिव जी ने गणेश व्रत का इतिहास उनसे कह दिया | तब पार्वती जी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यंत 21-21 की संख्या में लड्डुओं से गणेश जी का पूजन किया| 21 वे दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वती जी से मिलने आ गए| उन्होंने भी मां के इस व्रत का महत्व सुनकर व्रत किया | गणेश जी ने उनकी मनोकामना पूर्ण कि ऐसे हैं श्री गणेश जो सबकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं|